इनकम टैक्स रिटर्न भरने वक्त बहुत काम आती है इन बेसिक टर्म्स की जानकारी

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इनकम टैक्स रिटर्न सदा टाइम से भर देना चाहिए. अगर कुछ बेसिक टर्म्स की जानकारी पहले से पता हो तो आईटीआर फाइल करना बेहद आसान हो जाता है.

आपको अगर इनकम टैक्स रिटर्न भरना है तो कुछ बेसिक टर्म्स की जानकारी जरूर रखनी चाहिए. यह जानकारी आपको आईटीआर भरते समय बहुत काम आएगी.

करदाता: आयकर अधिनियम की धारा 2(7) के अनुसार वह व्यक्ति जो आयकर विभाग को राशि (ब्याज दंड आदि) देने के लिए जिम्मेदार है करदाता कहलाता है.

फाइनेंशियल इयरएक अप्रैल से 31 मार्च तक के समय को फाइनेंशिल इयर कहते हैं. उदाहरण के तौर पर एक अप्रैल 2017 से 31 मार्च 2018 तक के समय को फाइनेंशिल इयर 2017-18 कहा जाएगा.

एसेसमेंट ईयर एक जनवरी से शुरू होकर नया साल 31 दिसंबर को खत्म होता है लेकिन इनकम टैक्स रिटर्न में एक अप्रैल से शुरू होकर अगले साल 31 मार्च तक कमाई का हिसाब लिया जाता है. इनकम टैक्स एक्ट के मुताबिक यह समय फाइनेंशियल ईयर कहलाता है. एक फाइनेंशियल ईयर में कमाई का टैक्स अगले फाइनेंशियल ईयर में लिया जाता है. इसे आप ऐसे समझें जिस साल आप कमाई करते हैं वह फाइनेंशियल ईयर कहलाता है, उसके अगले साल जब आप टैक्स भरते हैं तो वह उस साल के लिए एसेसमेंट ईयर कहलाता है.

डिडक्शनइनकम टैक्स विभाग आयकर नियमों के तहत आपको कई तरह के निवेश और खर्च पर टैक्स छूट देता है. आप जो निवेश करते हैं इसके आधार पर टैक्स छूट का दावा करते हैं. इस पर आयकर विभाग आपको टैक्स रिफंड करता है. टैक्स में मिलने वाली छूट डिडक्शन कहलाती है.

ग्रॉस इनकम: करदाता की टैक्स-फ्री आमदनी और अलाउंसेस को घटाने के बाद साल की कुल आय को ग्रॉस इनकम कहा जाता है. ग्रॉस इनकम हमेशा 80C से 80U तक मिलने वाले डिडक्शन से पहले वाली इनकम होती है.

टैक्सेबल इनकम: ग्रॉस इनकम में आयकर की धारा 80C से 80U तक मिलने वाली टैक्स छूट लेने के बाद जो इनकम आती है, उसे टैक्सेबल इनकम कहते हैं.

टीडीएस:आपकी आमदनी पर सरकार टैक्स काटती है. इसे टैक्स डिडक्टेड ऐट सोर्स कहते हैं. आपकी कंपनी टैक्स की रकम काटकर बाकी रकम आपको सैलरी में देती है. कंपनी जितना टैक्स काटती है उसे आयकर विभाग के खाते में जमा करती है.